Friday, May 10, 2013

पाखंडो का विरोध:

                       संत शिरोमणि सैन जी महाराज 

    पाखंडो का विरोध: श्री सैन जी महाराज को आडंबर विल्कुल पसंद नही थे। उन्होने खुद भी ग्रहस्थ जीवन की जिम्मेवारी निभाते हुए धार्मिक कत्र्तवयों का आजीवन पालन किया। उन्होने अपनी यात्राओं के दारैरान देखा कि सभी धार्मिक स्थान पाखंड के अड्डेबन चुके थे। पंडों तथा ढोंगी ब्राह्राणें द्वारा भोली-भाली जनता का कर्म-कांड केनाम पर धार्मिक षोशण किया जा रहा था। उन्होने ब्राह्रमणों द्वारा स्थापित किए गए भ्रम मृत्यू भोज तथा श्राद्ध जैसे संस्कारो का विरोध किया और धार्मिक षोशण के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद की। अपने इन कर्म कांड और पााखंडों के विरोध में अनेकों बर ब्राह्रहणें से षास्त्रार्थ किया और उन्हे अपने तर्को से पराजित कर पाखंडवाद पर गहरी चोट की। आप कर्म-कांडों तथा जाल के विपरीत सरल गुणों के हिमायती थें। सैन जी सेवा, प्रेम, भक्ति व मधुर व्यवहार को संतों का प्रमुख लक्षण मानते थें। समाज सुधार एवं मानवीय दृश्टिकोण: संत सैन जी अपने समय के गिने- चुने समाज सुधारको में से क माने जाते थे। उस समय के समाज मे वर्ण भेद ऊंच-नीच,छुआ- छुत, सती प्रथा, बाल विवाह,जैसी कुप्रथाए अपने चर्मोत्कर्स पर थी एसे में सैन जी बडी निभिक्ता के साथ आगे बढकर इन सभी कुप्रथाओं की आलोचना करते। तथा एसे को दोश पूर्ण बताकर समाज सुधार के लिए हर सम्भव प्रयास करते। उन्होने कभी भी रूढीवादी सांमतषाहों के आगे घुटने नहीं टेके उनके विचार बहुत ही स्पश्ट वादी व्यावहारिक थें। सैन जी महाराज का मानवीय दृश्टिकोण बहुत ही स्पश्ट व व्यवहारिक था। उनकी नजर में कोई भी इंसान जन्म से छोटा बडा नही होता उनके विचार से जब ईष्वर ने सबको समान बनाया है तो मानव को उन्हे छोटा बडा बनाने का कोई  अधिकार नहीं उन्होने सम्पूर्ण जाति को ब्रहमा ज्योति का स्वरूप बताया तथा मानवता के प्रति सेवा भाव दया प्रेम और भक्ति की प्रेरणा दी वह प्रेम मार्ग द्वारा ही ईष्वर को प्राप्त करना चाहते थे। तथा धर्म व जाति के आधार पर किसी को छोटा बडा न मानकर सभी से समान रूप से प्रेम करना ही उनकी सबसे बडी ईष्वर भक्ति थी। गुरूपदः हरिद्वार , काषी व बनारस में अनेक बार ब्राह्राणों को षास्त्रार्थ में पराजित करने के पश्चात करने के पश्चात सैन जी की विद्वता की चारों तरफ धाक जम गई उोर इनकी प्रसिद्धि चारो दिषाओं में तेजी से फैल गई। परिणामस्वरूप् अन्य प्रतिभाओं के साथ साथ कई ब्राह्राण प्रतिभाएं भी इनका षिश्य बनने को लालायित हो उठी। सैन साखी के अनुसार इन्होने जसुपुर के जीवन नाई के साथ साथ कौर दास ब्राह्राण को भी अपना षिश्य बनाया। सैन सागर की साखी के अनुसार जब पंडित को दास ने सैन महाराज से अपना षिश्य बनाने की प्राथ्रना की तब सैन जी ने कौर दास से कहा कि आप तो ऊंची जाति के ब्राह्राण हैं हम नीची जाति के नाई हम आपको क्या ज्ञान दे सकते है? तुम किसी ब्राहा्रण के षिश्य क्यों नही बन जातें? तुम किसी ब्राह्राण से ही गुरू दीक्षा लीजिए। तब कौर दास ने काहा कि ऊंची जाति में जन्म लेने से कोई विद्वान नही बन जाता। विद्वान बनने के लिए अच्छे कर्म और अथक मेहनत करनी पडती है। इस प्रकार ब्राह्राण कौर दास वहीं रहकर सैन जी की सेवा करने लगा। तब उसकी सेवा से प्रसन्न होकर सैन जी ने कौर दास को अपना षिश्य बना लिया।

 

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