Friday, May 10, 2013

समकालीन भगतः

                       संत शिरोमणि सैन जी महाराज

                                                     
                                                                            समकालीन भगतः
                                           

सैन जी के साथ साथ भगत रविदास भगत कबीर भगत नामदेव भगत त्रिलोकचन्द भगत धन्ना भगत सधना भगतिणी पदमावती भगत अत्रतानंद भगणी सुरसरी भगत चोगानंद जी भगत गुलाब नन्द जी भगत भावानंदजी ने भी रामानन्द जी से दीकक्षा ग्रहण की इन भगतो द्वारा रची गई वाणी में भी सैन जी का नाम आता है । अध्यात्मिक क्षेत्र में प्रसिद्वि हासिल कर ली थी ।
यात्राएंः मध्य काल में सन्त महापुरूष लेाक कल्याण हेतू मानवता के प्रचार-प्रसार के लिए पूर्ण विश्व का भ्रमण करतें थें ंताकी अपने विचारो से जनमानस को जाग्रत कर सकें । इस कडी में सैन जी ने भी भिन्न-भिन्न स्थानो के साथ साथ विभिन्न तीर्थ स्थानो की यात्राएं भी की । इन यात्राओ के दौरान वे भेदभाव से ऊपर उठकर जगह-जगह प्रवचन करते और भटकी हुई मानवता का सत्य की राह पर लाने का प्रयास करते। सैन जी की बुवा शोभा देवी जी लाहौर में ब्याही थी सैन जी बहुत दिनो तक इनके पास लाहौर मे रहे वहा इन्होने रहीम खॉ हकीम से भी जर्राह का काम सीखा। बांधव गढ से लाहौर जाते समय सैन जी गंगा स्नान के लिए हरिद्वार में रूके । हरिद्वार में ब्रहाम्णों के साथ छुआ छुत और जात पात के विषय में सैन जी का शास्त्रार्थ हुआ। शास्त्रार्थ में ब्राहम्णो को पराजित करके यह साबित कर दिया कि छुआ छुत और जात पात सब स्वार्थी बाहम्णो की देन हैं। भगवान की नहीं । संत कबीर के निमत्रण पर सैन जी लाहोर से मुलतान आ गये वहा उन्होने मीराबाई को भी उपदेश दिया तथा 15 दिन तक मीराबाई के यहा रहकर सत्संग करते रहें। सैन जी ने सत्संग महीमा के समस्त पंजाब वालो का मन मोह लिया और संत शिरोमणि का प्राप्त किया उन्होने पंजाब में सर्व धर्म सच्ची मानवता और अध्यातमिक शिक्षा पर जगह-जगह घूम कर प्रचार किया  । प्रतापपुरा जिला जालंधर में डेरा बाबा सैन भगत जी का दशर्नीय स्थल है।यहा प्रतिदिन सैन ग्रंथ से पाठ और विषाल भंडारे का आयोजन किया जाता है। तमाम पंजाब का भ्रमण कर सैन जी पुनः लाहौर लौट आए तथा कुछ दिन लाहौर में रहकर बांधव गढ के लिए रवाना हो गए। संत सैन जी उत्तर प्रदेष का भ्रमण करते हुए काषी पहुंच गए जहां इनकी भेट संत रविदास (रेदास) के साथ हुई। काषी में इन्हें ब्राह्राणो के भारी विरोध का सामना करना पडा जिसका इन्होने डटकर मुकाबला किया तथा अपने तर्को के आधार पर ब्राह्रणों का षास्त्रार्थ में पराजित कर यह साबित कर दिया कि कोई भी मनुश्य जाति के आधार पर छोटा बडा नहीं होता भगवान ने सबको बराबर बनाया है। ये जातियां स्वार्थी मनुश्यों की देन है। इस विजय के बाद सारी काषी जी में सैन जी की खुब जय-जयकार हुई और इनके मूल सिद्धांत को माना गया। अपने सत्संग और उपदेषों का प्रभाव छोडतें हुए सैन जी संत संत रविदास से विदा होकर बंाधव गढ के लिए रवाना हो गए। 

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