श्री सेन चालीसा कवि
कवि गोरस प्रचण्ड कोटा
मैं अग्यानी हूं निरा.तुम हो कृपा निधान.
दो गोरस के मन प्रभु.करता हूं गुण गान
जयश्री सेन कीर्ति सुख दाई.
श्री नारायण महिमा गाई.
रोक सके नहीं कोई बाधा.
ईश्वर में तव प्रेम अगाधा .
सेवा कर्म जनम ते पाया
जो जीवन पर्यन्त निभाया.
खुद सज्जन संगति कीनी.
सारे जग कोसम्मति दीनी.
निर अभिमान कर्म निज कीना.
सारे जगत संदेशा दीना.
बृजभूमि में जनम तुम्हारा.
बांधवगढ़ अधिवास विहारा.
पदमा की आंखों के तारे .
चन्द्र सेन सुत जग उजियारे.
धन्य भई यह जाति तुम्हरी.
भक्तराज पर जग बलिहारी.
दम्भ सिंह का तुमने छीना.
निर्भय होकर परिचय दीना
भक्ति,दया,दान,जप,सेवा.
तुम जीवन भर यह व्रत लेवा.
सांस सांसहरिजस उच्चारा.
पर हिताय तुम जीवन धारा.
दुर्वासा ने मार्ग बताया .
अरू श्रध्दा सेगुरू बनाया.
ईश्वर भक्ति प्रबल प्रगाढ़ा.
मूल तत्व को तुमने ताडा़.
परिजन त्यागे काननआये.
तब श्री विष्णु तुम चेताये.
गृहस्थ बनो यह भाव जगाया.
संन्यासी सम ध्यान लगाया.
तजा विपिन तब घर को आये.
निज घर को गृह देव बनाये .
भूपति बारम्बार. बुलाये.
तुम सत्संग त्याग ना पाये.
भक्ति लीन किमी सत्संग च्यागे.
हरकारे सब गढ़े है आगै.
तब नृपसंदेशा भिजवाया.
सेन भगत को शीघ्र बुलाया.
सेन भगत मोहे कैसे भूला.
तब नृप बोले आग बबूला.
क्रोधित हो लगि सजा सुनाने.
सहसा प्रकटे सेन सयाने.
सेन क्ऱम नारायण कीना.
राजन अति सुख अनुभव कीना.
लक्षीपति बन आये नाई.
धन्य धन्य भयेजाति भाई.
श्रीविष्णु भये अन्तर्धाना.
क्षोर करम हित सेन प्रयाना.
निवृत हो तब आप पधारे.
राजन मुख तकिपलक निहारे.
अटरज से अचरज टकराया.
पर कुछ राज समझ ना आया.
सेन भगत तुम क्यों फिर आये.
भूपति ने यह वचन सुनाये.
अति आनन्द आज तुम दीना.
जैसे तीन लोक में लीना.
मुझसे तुम बड़भागी स्वामी.
दरशन दे गये अन्तर्यामी.
भूपति भगति मरम को जाना.
सेन भगत को गुरूवर माना.
सिहांसन पर तुम बैठारे .
गद गद होकर चरण पखारे.
नव जीवन तुम मुझको दीना.
मिटा कोढ़ तन स्वर्णिम कीना.
रानी राजपुत्र संग लीना.
चरण धोय चरणामृत पीना.
धरम करंम सब साथ निभाये.
भक्त शिरोमणि आप कहाये.
सेन वन्दना जो कोई गाये
जीवन के सब कष्ट मिटाये
सेन भक्त की गा़ये महिमा.
हों प्रसन्न विष्णु शिव ब्रह्मा.
जो राखे ईश्वर विश्वासा.
वह श्रीसेन भगत का दासा.
श्रध्दा प्रेम भक्ति से ध्यावे.
बल बुथ्दि,विद़्या सब पावे.
सच्चे मन से जो कोय ध्यावे.
सेन भगत सब पार लगावे .
जो कोई सेन भगत.गुण गावे.
मन का मेल हटे जस पावे.
जिनके मन श्रीसेन बिराजे.
मिटे ताप संताप नदाजे.
प्रेम भाव से पाहुन सेवा.
सेन कहे पावे मथु मेवा.
जोअठ बार. पाठ कर कोई.
मिटहि क्लेश महा सुख होई.
ध्यान लगाकर वन्दना,सेन भक्त म्हाराज
विपत हरे सबदुख टरेआन सुधारो काज
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कवि गोरस प्रचण्ड कोटा..................
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